क्या कंपनियों के प्रबंधक सामान्य लागत पर आयोजित होने वाले रक्तदान शिविरों में भारी रकम का दान देकर CSR के नाम पर धोखाधड़ी कर रहे हैं?
by Meroo Gadhvi Auranga Times
रक्तदान शिविर का खर्च मात्र 10 से 15 हजार है। तो, क्या कंपनियों के प्रबंधक अपने परिसरों में ऐसे शिविर आयोजित करने के बजाय CSR में धोखाधड़ी करने के लिए विभिन्न संगठनों को भारी मात्रा में दान देते हैं?
वलसाड डिस्ट्रिक्ट एक इंडस्ट्रियल एरिया है। यहां औद्योगिक इकाइयों में होने वाली दुर्घटनाओं के दौरान कुछ मरीजों को रक्त की तत्काल आवश्यकता होती है। जिसके लिए जिले और विशेषकर वापी के औद्योगिक क्षेत्र में संचालित ब्लड बैंकों से रक्त की आपूर्ति की जाती है। मानवता की सेवा के इस कार्य में कई इकाइयां, संगठन रक्तदान शिविरों का आयोजन या सहयोग कर अपना योगदान दे रहे हैं। हालाँकि, इस सेवा के नाम पर कुछ इकाइयों और संगठनों के प्रबंधक मेवा भी खा रहे हैं।
वापी के एक जाने-माने रक्तदान केंद्र के एक वडील से मिली जानकारी के अनुसार, आमतौर पर 100 यूनिट रक्त एकत्र करने के लिए आयोजित होने वाले रक्तदान शिविर में केवल 5 हजार का खर्च आता है। इसमें रक्तदाताओं के लिए चाय-कॉफी-बिस्कुट की लागत और रक्तदान केंद्र के कर्मचारियों के लिए भोजन की लागत शामिल है। यदि किसी रक्तदान शिविर के आयोजक प्रत्येक रक्तदाता को गिफ्ट देने, विशिष्ट व्यक्तियों का सम्मान करने और कार्यक्रम स्थल, पानी, बिस्तर, कुर्सी, मंच की व्यवस्था करने की भी योजना बनाते हैं, तो भी लागत 15 हजार से अधिक नहीं होती है।
रक्तदान में 100 बोतल रक्त एकत्रित करने का खर्च मात्र 10 से 15 हजार आता है। इसलिए वलसाड जिले की कई औद्योगिक कंपनियों को अपने परिसरों में ऐसे शिविर आयोजित करने चाहिए और CSR के तहत अपना सामाजिक योगदान देना चाहिए। लेकिन जिले की औद्योगिक इकाइयों में उल्टी गंगा बहती है। ऐसे रक्तदान शिविरों के लिए कंपनियों का प्रबंधक अपने आयोजकों को दान के नाम पर CSR के तहत 20 से 25 हजार तक देने से नहीं हिचकिचाता। यह आश्चर्य की बात है। इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या संगठनों को भारी भरकम चंदा CSR में गड़बड़ी करने के लिए दिया जाता है?
गौरतलब है कि, 5 से 15 हजार की लागत से अपने परिसर में रक्तदान शिविर आयोजित करने के बजाय दूसरी संस्थाओं के बैनर में अपनी कंपनी का लोगो व नाम पेंट कर प्रायोजित करने वाली ऐसी इकाइयों के खिलाफ जांच जरूरी है।