दमन पर्यटन विभाग को गुजरात पर्यटन से सीखना चाहिए कि इस तरह के आयोजन कैसे किए जाते हैं। और स्थानीय लोगों, कलाकारों, पत्रकारों के साथ कैसे व्यवहार किया जाता है।
दमन प्रशासन ने पर्यटन विभाग के साथ मिलकर साप्ताहिक मानसून महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया है। सूत्रों की मानें तो इस महंगे आयोजन से जनता को सामान्य मनोरंजन से ज्यादा कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। लेकिन, यह आयोजन अधिकारियों की जेब गरम् कर रहा है। दादरा नगर हवेली एवं दमन दीव पर्यटन विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रशासनिक अधिकारियों ने इसके पीछे भारी भरकम रकम खर्च कर इस आयोजन को सुर्खियों से दूर रखने की कोशिश की है। आयोजन में शामिल कलाकारों से लेकर भीड़ जुटाने तक अधिकारी सिर्फ ओर सिर्फ अपनी मनमर्जी चला रहे है।1 घंटे के कार्यक्रम के लिए कलाकारों को 4 घंटे पहले बुलाया जाता है। जिसमें इन कलाकारों के लिए पानी, खाने के पैकेट तो दूर, सुरक्षा का भी कोई इंतजाम नहीं किया जाता है। इसके विपरीत, कार्यक्रम देखने आने वाले स्थानीय लोगों, पर्यटकों के साथ सुरक्षाकर्मी कैदियों जैसा व्यवहार करते है। इस कार्यक्रम को बड़े पैमाने पर प्रचारित करने के लिए पत्रकारों को केवल व्हाट्सएप निमंत्रण दिया जा रहा है। प्रशासन के कुछ राजनीतिक नेता, व्यवसायियों के लिए विशेष व्यवस्था करने वाला प्रशासन पत्रकारों के लिए बैठने के लिए एक सामान्य मेज या कुर्सी की भी व्यवस्था करना अपर्याप्त महसूस कर रहा है। कार्यक्रम को संभाल रहे अधिकारी पूरे कार्यक्रम में अभद्र व्यवहार कर पत्रकारों को भी परेशान कर रहे है।विवरण के अनुसार ऐसे प्रशासनिक अधिकारी केवल आयोजन के नाम पर मोटी रकम वसूलने के लिए मनमानी कर रहे हैं। और दूसरे संगठनों की मेहनत को अपने काम में हजम कर रहे हैं। जिसका एक उत्कृष्ट उदाहरण पिछले 50 वर्षों से दमन में आयोजित होने वाले नारीयेली पूर्णिमा महोत्सव को लेकर भी सामने आया है। यह कार्यक्रम दमन की सामाजिक संस्था द्वारा वर्षों से आयोजित किया जाता रहा है। जिसमें अब प्रशासन के अधिकारियों के बढ़ते चंचुपात से हर वर्ष आयोजन करने वाली संस्थाने इस साल रक्षा बंधन के उपलक्ष्य में होने वाले नारीयेली पूर्णिमा कार्यक्रम से हटने का फैसला किया है।
इस हद तक कि मानसून महोत्सव और नारीयेली पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों को लेकर अधिकारियों के बीच कोई समन्वय नहीं है। जब प्रशासनिक अधिकारी से घटना का विवरण मांगते हैं तो वे केवल एक दूसरे पे थोप रहे है।
एक ओर, किंडरगार्टन स्टाफ और अन्य कर्मचारियों को वेतन देने में पीछे रहने वाला प्रशासन इतने महंगे आयोजन के नाम पर मोटी रकम वसूल कर अपनी जेब भर रहा है। शायद प्रशासन के ऐसे रवैये से आहत होकर ही मतदाताओं ने यहां चुनाव में बीजेपी जैसी सक्षम पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन देने के बजाय निर्दलीय उम्मीदवार को वोट दिया होगा।
हालांकि, इस के बाद भी बीजेपी नेता प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने की बजाय जी-हजुरिया की नीति में रहकर साहब को ही सलाम मार रहे है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो शायद दमन आने वाले दिनों में अपनी संस्कृति, त्योहारों की परंपरा को भूल जाएगा, और यहां के लोग केवल अडंबर के पीछे छुपते ही रह जाएंगे।