संघ प्रदेश के दादरा नगर हवेली और दमन व वलसाड जिलों में रोजगार के लिए बसे बंगाली समुदाय वर्षों से सेलवास में दुर्गा पूजा उत्सव का आयोजन करते आ रहे हैं। जिसके तहत इस वर्ष भी माताजी की भव्य प्रतिमा स्थापित कर दुर्गा पूजा महोत्सव की शुरुआत की गयी है। 4 दिनों के इस सार्वजनिक उत्सव में अष्टमी के दिन बलिपूजा, संधिपूजा के साथ माताजी की पूजा-अर्चना की गई। ये पूरा आयोजन दुर्गापूजा कमिटी सिलवासा के प्रेसिडेंट पी बी चन्द्रा, चीफ पेट्रोन स्वर्णकमल चक्रवर्ती, वाइस प्रेसिडेंट दीनबंधु चैटर्जी और सेक्रेटरी अरुण मांजी और उनकी टीम ने किया है। इस अवसर पर इन सभीने इस उत्सव के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की थी।
जिस प्रकार गुजरात का नवरात्रि विश्व प्रसिद्ध है। उसी प्रकार बंगाल का दुर्गा पूजा उत्सव भी विश्व प्रसिद्ध है। यूनेस्को द्वारा इसे हेरिटेज कल्चर में शामिल किया गया है। बंगाल के इस महान त्योहार को बरकरार रखने और बच्चों में संस्कृति का सिंचन बरकरार रखने के लिए दादरा नगर हवेली में वर्षों से रह रहे बंगाली समाज के लोगों द्वारा पिछले 11 वर्षों से बड़े ही हर्षोल्लास के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है।
संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली में रहने वाले बंगाली समुदाय द्वारा आयोजित सेलवास के तत्वावधान में दुर्गा पूजा समिति ने हर साल की तरह इस साल भी भव्य दुर्गा पूजा उत्सव का आयोजन किया। दुर्गा पूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है। माँ दुर्गा ने राक्षस महिसासुर का वध किया। इस विजय को बंगाली समाज शारदोत्सव के रूप में मनाते है। यह पर्व शक्ति आराधना के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
आम तौर पर, नवरात्रि के नौ दिनों में सातवीं से दसवीं तक चार दिन दुर्गा पूजा मनाई जाती है। जिसमें भक्ति भाव से मां दुर्गा की पूजा की जाती है। सातवें दिन देवी दुर्गा की मूर्ति स्थापित करके उत्सव की शुरुआत होती है। अष्टमी के दिन संधि पूजा और बलि पूजा का आयोजन किया जाता है। एक समय बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान पशु बलि भी दी जाती थी। अब वह प्रथा बंद हो गई है। इसके स्थान पर गन्ने और लौकी की बलि दी जाती है।
गुजरात में नवरात्रि उत्सव के दौरान गरबा का एक और महत्व है। उसी प्रकार दुर्गा पूजा में केला और केला का महत्व होता है। सबसे पहले केले के पत्ते को भगवान गणेश की पत्नी के रूप में सजाकर उसकी पूजा की जाती है। अष्टमी के दिन ही मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था। तो इन चार दिनों में माता पार्वतीजी कैलाश पर्वत से मायके में आती हैं। जिसकी सराहना ही इस त्यौहार के पीछे का महत्व है। बंगाल में इस त्यौहार के आखिरी दिन विजयादशमी के दिन माताजी की मूर्ति को विसर्जित करने के साथ ही महादेव को संदेश देने के लिए नीलकंठ नामक पक्षी को आकाश में छोड़ा जाता है कि माता पार्वती मायके से पियर के लिए प्रस्थान कर चुकी हैं।
इस चार दिवसीय त्योहार का बंगाल से लेकर दूसरे राज्यों में बसे बंगाली समुदाय को बेसब्री से इंतजार रहता है। अपने बच्चों को बंगाली संस्कृति से परिचित कराने और माताजी की पूजा करने के उद्देश्य से बंगाल को छोड़कर सिलवासा जैसे सभी स्थानों पर समाज के लोग अपनी नौकरियों से छुट्टी ले के इस त्योहार में परिवार के साथ शामिल होते हैं। और शक्ति माँ की आराधना भक्ति भाव से करती है।
संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली में आयोजित होने वाले दुर्गा पूजा उत्सव में महिलाएं भी भक्ति भाव से माताजी की पूजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। सब माताजी से प्रार्थना करते है कि वे अपनी सदियों पुरानी संस्कृति को बचाए रखें। वह इस आशीर्वाद की कामना करते हैं कि उनके परिवार, देश और समाज में सभी लोग सुखी और सुरक्षित रहें।
सदियों पुराना यह त्योहार नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान आखिरी 4 दिन यानी सप्तमी से शुरू होकर विजयादशमी तक भक्ति भाव से मनाया जाता है। दादरा नगर हवेली में रहने वाला बंगाली समुदाय कलकत्ता के कारीगर द्वारा बनाई गई मां दुर्गा की मूर्ति सिलवासा लाते है। जिसके साथ रिद्धि सिद्धि दाता भगवान गणेश की भी स्थापना की जाती है। माताजी की पूजा के लिए महाराज को बंगाल से बुलाया जाता है।
गौरतलब है कि सेलवास के शामरवरणी पंचायत भवन में आयोजित दुर्गा पूजा महोत्सव में हर दिन महाप्रसाद का भी आयोजन किया जाता है। इस सार्वजनिक उत्सव के लिए कलकत्ता से रसोइयों को आमंत्रित किया जाता है। उत्सव में आने वाले सभी भक्तों को कलकत्ता के शुद्ध व्यंजन परोसे जाते हैं। उत्सव के दौरान विशेष भजन संध्या, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। जिसमें सेलवास के 15 हजार से अधिक लोगों को इसका लाभ मिलता है। माताजी के दर्शन होते हैं। विजय दशमी के दिन माताजी की मूर्ति को श्रद्धापूर्वक दमनगंगा नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।