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Daman-Diu Liberation Day :- भारत के ब्रिटिश colonial rule से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बावजूद, Portuguese शासन ने गोवा, दमन और दीव पर एक दशक से अधिक समय तक नियंत्रण बनाए रखा

भारत ने 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन पुर्तगाली शासकों ने गोवा, दमन और दीव जैसे क्षेत्रों पर अपना शासन जारी रखा, जबकि भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुए लगभग एक दशक से अधिक का समय हो गया था। इन क्षेत्रों पर पुर्तगाली शासन को बनाए रखने के कारणों को समझने के लिए हमें पुर्तगाली उपनिवेशवाद, भारत की स्वतंत्रता के समय की स्थिति और इन क्षेत्रों को भारत में शामिल करने के प्रयासों का विश्लेषण करना होगा।

पुर्तगाली उपनिवेश और भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष

पुर्तगाल के उपनिवेश गोवा, दमन और दीव 450 से अधिक वर्षों तक पुर्तगाली नियंत्रण में रहे, जो उन्हें दुनिया के सबसे लंबे समय तक बसे उपनिवेश बनाते हैं। इन क्षेत्रों को केवल उपनिवेश नहीं, बल्कि पुर्तगाल की राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा माना जाता था, हालांकि यह भारत के भूभाग में स्थित था। जब भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ, तब भी गोवा, दमन और दीव पुर्तगाली शासन में थे, जो कि ब्रिटिश उपनिवेश से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद एक विचित्र स्थिति थी। पुर्तगाली सरकार, जो एंटोनियो दे ओलिवेरा सालजार के नेतृत्व में थी, अपने विदेशी क्षेत्रों को बनाए रखने के लिए दृढ़ थी और वह इन क्षेत्रों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी, जबकि अन्य यूरोपीय शक्तियाँ ऐसा कर रही थीं, विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद।

पुर्तगाली का दृष्टिकोण और भारत का संघर्ष

पुर्तगाल के उपनिवेशों को छोड़ने में असमर्थता का एक प्रमुख कारण यह था कि इन क्षेत्रों को पारंपरिक रूप से उपनिवेश नहीं, बल्कि पुर्तगाल का विदेशी हिस्सा माना जाता था। पुर्तगाली सरकार, सालजार के तानाशाही शासन के तहत, “एस्टाडो नोवो” (नया राज्य) विचारधारा में विश्वास करती थी, जिसमें राष्ट्रवाद, कॉर्पोरेटवाद और तानाशाही को बढ़ावा दिया गया था। इस विचारधारा के तहत, पुर्तगाल इन क्षेत्रों को, जिसमें गोवा, दमन और दीव शामिल थे, पुर्तगाल के विदेशी प्रांतों के रूप में देखता था। पुर्तगाली सरकार इन क्षेत्रों में बढ़ती हुई राष्ट्रीयता की लहर और स्वतंत्रता की मांगों को नजरअंदाज करती रही और अपने शासन को बनाए रखने के लिए दृढ़ रही।

भारत की स्थिति और कूटनीतिक प्रयास

भारत, जो 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशी शासन से स्वतंत्र हो गया था, इन क्षेत्रों को अपने नए गणराज्य में शामिल करने के लिए उत्सुक था। भारत ने गोवा, दमन और दीव को पुर्तगाली शासन के अवशेष के रूप में देखा और उनके अस्तित्व को भारत की संप्रभुता के उल्लंघन के रूप में माना। लेकिन पुर्तगाल इन क्षेत्रों को छोड़ने के लिए कोई गंभीर बातचीत करने के लिए तैयार नहीं था और इस पर यह तर्क देता था कि ये क्षेत्र पुर्तगाल के विदेशी प्रांत थे और इसलिए इसे छोड़ने का सवाल ही नहीं था।

भारत और पुर्तगाल के बीच कूटनीतिक संघर्ष

भारत और पुर्तगाल के बीच कूटनीतिक प्रयासों के बीच यह स्थिति हल नहीं हो सकी। पुर्तगाली सरकार, सालजार के नेतृत्व में, कभी भी गंभीर वार्ता में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थी। वह यह तर्क करती थी कि ये क्षेत्र उपनिवेश नहीं, बल्कि पुर्तगाल के विदेशी प्रांत थे। यह एक बड़ा मतभेद था क्योंकि भारत ने स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और उपनिवेशवाद विरोधी विचारों को अपनाया था, जबकि पुर्तगाल अपने उपनिवेशों को अपने साम्राज्य का अभिन्न हिस्सा मानता था। इसके परिणामस्वरूप, भारत और पुर्तगाल के बीच कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण हो गए और स्थिति कई वर्षों तक जटिल रही।

लश्करी कार्रवाई: ऑपरेशन विजय

भारत में उस समय राजनीतिक वातावरण में भी कई बदलाव हो रहे थे। देश विभाजन के बाद हिंसा और विस्थापन का सामना कर रहा था। भारत को स्वतंत्रता के बाद कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, जिसमें रियासतों का विलय और आर्थिक पुनर्निर्माण शामिल था। भारत अपनी सेना को आधुनिक बनाने के शुरुआती चरण में था, और सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार नहीं था। जबकि भारत के नेता गोवा, दमन और दीव को स्वतंत्र करने के लिए उत्सुक थे, तब देश की सेना पूरी तरह तैयार नहीं थी।

इस समय, गोवा, दमन और दीव में स्थिति बिगड़ रही थी। इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग, जिन्होंने पुर्तगाली शासन के तहत कई पीढ़ियों तक जीवन बिताया था, अब उपनिवेशी शासन के अंत की इच्छा रखते थे। गोवा विशेष रूप से विरोध का केंद्र बन गया था और राष्ट्रीयतावादी आंदोलन मजबूत हो रहा था। पुर्तगाल ने इन विरोधों को हिंसक तरीके से दबाने की कोशिश की, लेकिन स्वतंत्रता की मांग लगातार बढ़ती रही।

भारत की सैन्य कार्रवाई और पुर्तगाल का पराभव

भारत ने कूटनीतिक माध्यमों के जरिए पुर्तगाल पर दबाव बनाए रखा, लेकिन पुर्तगाल का दृष्टिकोण हमेशा अडिग रहा। वह इस स्थिति का कूटनीतिक समाधान नहीं देख रहा था। भारत के नेताओं को अब यह महसूस होने लगा था कि केवल सैन्य कार्रवाई ही इसका समाधान हो सकती है। 1961 में भारत ने “ऑपरेशन विजय” नामक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य गोवा, दमन और दीव को पुर्तगाली शासन से मुक्त करना था। यह अभियान कूटनीतिक विफलता और इन क्षेत्रों में बढ़ती पीड़ा और अशांति का परिणाम था।

ऑपरेशन विजय एक त्वरित और निर्णायक सैन्य अभियान था। स्वतंत्रता के बाद मजबूत हुई भारतीय सेना की शक्ति पुर्तगाली सेना से कहीं अधिक थी। कुछ ही दिनों में पुर्तगाली सेना को पराजित किया गया और इन क्षेत्रों को भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया। 19 दिसंबर 1961 को गोवा, दमन और दीव वैध रूप से भारत का हिस्सा बन गए। इस दिन को गोवा, दमन और दीव के लिबरेशन डे के रूप में मनाया जाता है और इसे भारतीय राष्ट्रीयता की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जाता है।

लिबरेशन और पुर्तगाली नागरिकों का पलायन

स्वतंत्रता के बाद, कई पुर्तगाली नागरिकों, जिनमें सैन्य कर्मी, सरकारी कर्मचारी और सामान्य नागरिक शामिल थे, गोवा, दमन और दीव से पुर्तगाल लौट गए। अनुमानित 30,000 से 40,000 पुर्तगाली नागरिक इन क्षेत्रों को छोड़कर पुर्तगाल लौट गए। ये लोग यहाँ कई पीढ़ियों से रह रहे थे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद की अनिश्चितता और हिंसा के डर से उन्होंने यह निर्णय लिया। हालांकि, गोवा, दमन और दीव में रहने वाले भारतीय मूल के लोग पुर्तगाली शासन के अंत का स्वागत करते थे और अपनी स्वतंत्रता का उत्सव मनाते थे।

निष्कर्ष…..

पुर्तगाल अपने उपनिवेशों को छोड़ने में असमर्थ था क्योंकि यह राष्ट्रीय गर्व, साम्राज्य को बनाए रखने की इच्छा और सालजार शासन की तानाशाही दृष्टि से प्रेरित था। जबकि ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने उपनिवेशों को छोड़ रहा था, पुर्तगाल अपने विदेशी प्रांतों को बनाए रखना चाहता था। इसके परिणामस्वरूप, पुर्तगाल और भारत के बीच कूटनीतिक संघर्ष जारी रहा, जो कई वर्षों तक बना रहा। अंततः 1961 में भारत की सैन्य कार्रवाई से पुर्तगाली उपनिवेशवाद का अंत हुआ और गोवा, दमन और दीव भारतीय संघ में शामिल हो गए।

यह लिबरेशन गोवा, दमन और दीव के लोगों के लिए स्वतंत्रता संघर्ष का अंतिम अध्याय था, जिन्होंने पुर्तगाली शासन के खिलाफ संघर्ष किया था। इस दिन को आज गोवा, दमन और दीव में लिबरेशन डे के रूप में मनाया जाता है और इस दिन को याद किया जाता है कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कैसे पूरा किया।

डॉ सेठी के. सी. ऑथर, दमन

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