वापी रेलवे स्टेशन पर दुर्घटना में मारे गए यात्रियों के शवों को वापी के जमीयत उलमा ट्रस्ट वापी के अध्यक्ष इंतेखाब आलम खान और उनकी टीम द्वारा उठाया जाता है। जिसे कफन से ढककर प्लेटफार्म पर ही लॉरी पर रख दिया जाता है। यात्री इन क्षत-विक्षत, रक्तरंजित, बदबूदार शवों को देखकर चौंक जाते हैं। इंतेखाब खान ने अपने खर्च से 80 हजार की कीमत का Coffin (शवपेटी) (ताबूत बॉक्स) बनवाया है, ताकि शव सुरक्षित रहे और प्लेटफॉर्म पर यात्रियों को परेशानी न हो। लेकिन पिछले डेढ़ साल से इस कॉफिन बक्से को रखने के लिए कई बार लिखित अनुरोध के बावजूद रेलवे विभाग के निर्दयी अधिकारी उस को रखने की इजाजत नहीं दे रहे हैं।
वापी रेलवे स्टेशन पर एक सप्ताह में एक से दो और कभी-कभी 5-6 यात्रियों की मौत दुर्घटनाओं में हो रही है। जब भी कोई व्यक्ति रेलवे ट्रैक पर मरता है तो जमीयत उल्लमा ए ट्रस्ट वापी के अध्यक्ष इंतेखाब आलम खान और उनकी टीम ऐसे शवों को उठाकर प्लेटफार्म पर ले आती है। जिसके बाद उसे वहां से पीएम के लिए सरकारी अस्पताल ले जाया जाता है। ये सभी खर्च संस्था द्वारा ही वहन किया जाता है।
यह सेवा पिछले 37 वर्षों से लगातार चल रही है। और इस लगातार सेवा के दौरान इंतेखाब खान के ध्यान में यह बात आई कि जब भी शव (dead body) को रेलवे स्टेशन पर लाया जाता है। इसके बाद उसे कफन से ढककर ही लॉरी पर रखा जाता है। कटे हुए अंगों, खून बहते अंगों और दुर्गंध वाले इन शवों को देखकर यात्री हैरान रह जाते है। इसलिए यदि ऐसे शवों को ताबूत बॉक्स/कॉफिन/शवपेटी में रखा जाए, तो शव सुरक्षित रहेगा, प्लेटफॉर्म पर खून के धब्बे यात्रियों को परेशान नहीं करेंगे, और आसपास के यात्रियों को इसकी गंध नहीं आएगी। यह उदेश्य से अपने खर्चे पर अनुमानित 80 हजार का कॉफिन बनाया गया।
लेकिन पिछले डेढ़ साल में कई बार लिखित आवेदन देने के बावजूद भी रेलवे अधिकारी कॉफिन बॉक्स को रेलवे स्टेशन पर रखने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। मानों वलसाड रेलवे मंडल अधिकारी, DRM समेत रेलवे अधिकारी का इस कॉफिन रखने से ऐसा क्या लूंट रहा है कि इस ताबूत बॉक्स को रखने में रेलवे अधिकारी मंजूरी नही दे रहे है।
बता दें कि वापी रेलवे स्टेशन ए ग्रेड रेलवे स्टेशन है। भले ही यह रेलवे स्टेशन हर साल करोड़ों रुपये का राजस्व अर्जित करता है, लेकिन यहां यात्रियों के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। रेलवे विभाग के कर्मचारियों के लिए भी यहां कोई जरूरी सुविधा नहीं है। समझा जाता है कि लगातार सफाई के नाम पर अखबारों में फोटो छपवाने वाले रेलवे अधिकारी इसके अलावा हर काम में फिसड्डी हैं। लेकिन निर्दयी भी है इसका सबूत भी दे रहे हैं।